
हाईकोर्ट ने कहा लिव इन रिलेशनशिप मे रहना सिर्फ टाइम पास ही रह गया है कुछ समय बाद रिश्तो को स्वीकार नहीं किया जाता जिसके दुष्परिणाम सामने आ रहे है लेकिन उनके इन विचारों का गलत अर्थ न लगाया जाए ऐसे रिश्ते सिर्फ आकर्षण का केंद्र बनकर रह गए है।
प्रयागराज मे अंतर धार्मिक प्रेमी युगल द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के कारण पुलिस से सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए कहा है कि ऐसे रिश्ते बिना किसी ईमानदारी के विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण के कारण होते हैं और वे अक्सर टाइमपास में परिणित होते हैं। जिसके परिणाम बहुत गलत आ रहे है। लड़की की चाची के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि लड़के के खिलाफ यूपी गैंगस्टर एक्ट के तहत एफआईआर है।
हालांकि इलाहाबाद कोर्ट ने यह भी कहा कि उनके विचारों का गलत अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि वह कोई टिप्पणी कर रहे हैं। ये कहते हुए कोर्ट ने विवेचना के दौरान याची को कोई भी सुरक्षा देने से इनकार कर दिया।कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी एवं न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने दिया है। खंडपीठ ने कहा कि दो महीने में और वह भी 20-22 साल की उम्र में न्यायालय यह उम्मीद नहीं कर सकता है कि युगल इस प्रकार के अस्थायी रिश्ते पर गंभीरता से विचार कर पाएंगे। क्योंकि अक्सर इस उम्र मे निर्णय लेने की उत्सुकता ज्यादा होती है जिसके विपरीत परिणाम निकलते है।
उक्त केस मे कौर्ट ने कहा कि जब तक युगल शादी करने का फैसला नहीं करते हैं और अपने रिश्ते को नाम नहीं देते हैं या वे एक-दूसरे के प्रति ईमानदार नहीं होते हैं, तब तक न्यायालय इस प्रकार के रिश्ते में कोई राय नहीं व्यक्त कर सकता है।
कोर्ट ने ये टिप्पणियां एक हिंदू लड़की और एक मुस्लिम लड़के द्वारा संयुक्त रूप से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए की हैं। याचिका में लड़की की चाची द्वारा लड़के के खिलाफ आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज कराई गई एफआईआर को चुनौती दी गई थी। कोर्ट के समक्ष लड़की के वकील ने दलील दी कि लड़की की उम्र 20 वर्ष से अधिक है और बालिग होने के नाते उसे अपना भविष्य तय करने का पूरा अधिकार है। वह लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है।